भारत में पटाखों का इतिहास: चीन से शिवकाशी तक का सफर
पटाखों का इतिहास बहुत पुराना है और इसका आरंभ चीन से माना जाता है। लगभग 2000 साल पहले चीन में बारूद का आविष्कार हुआ था, जिससे आतिशबाजी का चलन शुरू हुआ। चीन में पटाखों का उपयोग पहले बुरी आत्माओं को भगाने के लिए किया जाता था, जिसे बाद में उत्सवों और समारोहों का हिस्सा बना लिया गया। धीरे-धीरे यह कला और तकनीक दुनिया भर में फैल गई।
भारत में पटाखों का आगमन मुगल काल में हुआ, जब राजाओं और अमीरों ने इसे अपने दरबारों में मनोरंजन के साधन के रूप में अपनाया। मुगलों के दौर में आतिशबाजी को त्योहारों और विशेष अवसरों पर प्रदर्शित किया जाने लगा। विशेषकर दीवाली के त्योहार पर पटाखों का चलन बढ़ा और यह भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बन गया।
शिवकाशी: भारत का पटाखा केंद्र
दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य में स्थित शिवकाशी शहर आज देश के सबसे बड़े पटाखा उत्पादन केंद्र के रूप में जाना जाता है। 20वीं शताब्दी की शुरुआत में शिवकाशी में पटाखों का निर्माण कार्य शुरू हुआ। भारत में अंग्रेजी शासन के दौरान यहां के उद्यमियों ने आतिशबाजी के व्यवसाय को बढ़ावा दिया। धीरे-धीरे, शिवकाशी का यह छोटा शहर पटाखों के उत्पादन में इतना विकसित हुआ कि आज यह भारत की पटाखा आपूर्ति का लगभग 90% उत्पादन करता है।
शिवकाशी में हजारों लोग इस उद्योग से जुड़े हुए हैं और यह शहर अपने उच्च गुणवत्ता वाले पटाखों के लिए प्रसिद्ध है। यहां का पटाखा उद्योग दीवाली के अलावा अन्य त्योहारों और कार्यक्रमों के लिए भी पटाखे बनाता है।
ग्रीन पटाखों की ओर रुख
वर्तमान में बढ़ते प्रदूषण और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता के चलते, शिवकाशी सहित अन्य पटाखा निर्माता भी पर्यावरण-अनुकूल या ग्रीन पटाखों की ओर रुख कर रहे हैं। नेशनल एनवायरनमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (NEERI) ने ग्रीन पटाखों का विकास किया है, जो पारंपरिक पटाखों की तुलना में 30-35% कम प्रदूषण करते हैं।
दीवाली और पटाखों का सांस्कृतिक महत्त्व
भारत में दीवाली के त्योहार पर पटाखे जलाना खुशियों और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। इसके अलावा पटाखों का उपयोग शादी-ब्याह, नए साल के जश्न, और अन्य बड़े आयोजनों में भी किया जाता है। हालाँकि, आज के समय में लोग पटाखों के प्रदूषण और उनके स्वास्थ्य पर प्रभावों को देखते हुए पटाखों के वैकल्पिक तरीकों का भी समर्थन कर रहे हैं।
निष्कर्ष
चीन से शुरू होकर भारत के शिवकाशी तक का सफर पटाखों के इतिहास और उनके महत्व को दर्शाता है। आज भारत में पटाखों का एक समृद्ध उद्योग विकसित हो चुका है, जो न केवल धार्मिक बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। लेकिन अब ग्रीन पटाखों के माध्यम से पर्यावरण को सुरक्षित रखते हुए इस उद्योग को आगे बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है।