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Biography of Samrat Ashoka

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सम्राट अशोक की जीवनी

सम्राट अशोक, जिन्हें अशोक महान के नाम से भी जाना जाता है, मौर्य साम्राज्य के सबसे महान और शक्तिशाली शासकों में से एक थे। वे भारतीय इतिहास के उन शासकों में से हैं, जिनका नाम शक्ति, न्याय और धर्म के प्रतीक के रूप में लिया जाता है। अशोक की महानता उनके जीवन के दो पक्षों में झलकती है: पहले एक विजेता और फिर एक धर्मपरायण शासक के रूप में। उन्होंने बौद्ध धर्म को अपनाकर अहिंसा, शांति और धर्म की राह पर चलने का संदेश दिया।


1. प्रारंभिक जीवन और परिवार

सम्राट अशोक का जन्म 304 ईसा पूर्व में पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना) में हुआ था। उनके पिता सम्राट बिंदुसार थे, जो मौर्य साम्राज्य के दूसरे शासक थे। उनकी माता का नाम सुभद्रंगी या धर्मा था, जो एक साधारण ब्राह्मण परिवार से थीं। अशोक का बचपन शाही महल में बीता, लेकिन उनके जीवन के शुरुआती दिनों में ही यह स्पष्ट था कि वे असाधारण प्रतिभा के धनी हैं।

अशोक के कई भाई-बहन थे, और उनमें साम्राज्य के उत्तराधिकारी बनने के लिए संघर्ष भी हुआ। कहा जाता है कि अशोक ने अपनी बुद्धिमत्ता और युद्धकला के कारण जल्दी ही अपने पिता की नज़र में विशेष स्थान प्राप्त कर लिया। उन्हें साम्राज्य के विभिन्न हिस्सों में शासन और प्रशासन की जिम्मेदारियाँ दी गईं, जिसमें उज्जैन और तक्षशिला प्रमुख थे।


2. राजगद्दी पर आरोहण

सम्राट बिंदुसार की मृत्यु के बाद, अशोक ने 273 ईसा पूर्व में मौर्य साम्राज्य की गद्दी संभाली। हालांकि, उनके राजा बनने को लेकर कुछ मतभेद और संघर्ष हुए थे, जिसमें उन्होंने अपने भाईयों के साथ कड़ा संघर्ष किया। अशोक ने अपने भाइयों को पराजित किया और उन्हें समाप्त कर, अपने साम्राज्य की बागडोर संभाली। प्रारंभिक काल में अशोक एक कठोर और युद्धप्रिय शासक थे, जिन्हें उनकी क्रूरता के कारण ‘चंड अशोक’ कहा जाता था।


3. कलिंग युद्ध और हृदय परिवर्तन

अशोक के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण मोड़ 261 ईसा पूर्व में हुआ, जब उन्होंने कलिंग युद्ध लड़ा। कलिंग वर्तमान उड़ीसा में स्थित एक स्वतंत्र राज्य था, जिसे अशोक ने अपने साम्राज्य में मिलाने का प्रयास किया। यह युद्ध अत्यंत रक्तपातपूर्ण और विनाशकारी था। कहा जाता है कि इस युद्ध में लगभग 1,00,000 लोग मारे गए और कई हजार लोग घायल हुए या बंदी बनाए गए।

जब अशोक ने युद्ध के बाद मारे गए लोगों की स्थिति और जनसंहार देखा, तो उनके मन में गहरा पश्चाताप हुआ। इस घटना ने उनके हृदय को पूरी तरह बदल दिया। उन्होंने युद्ध और हिंसा के मार्ग को छोड़कर अहिंसा और धर्म के मार्ग पर चलने का संकल्प लिया।


4. बौद्ध धर्म की दीक्षा

कलिंग युद्ध के बाद, अशोक ने बौद्ध धर्म की शिक्षाओं को अपनाया और इसे अपने जीवन का मार्गदर्शक बनाया। वे बौद्ध धर्म के महान अनुयायी और प्रचारक बन गए। उन्होंने धम्म (धर्म) की स्थापना की और अपने साम्राज्य में शांति और अहिंसा का प्रचार किया। उन्होंने अपने राज्य के नागरिकों को भी बौद्ध धर्म की शिक्षाओं का पालन करने के लिए प्रेरित किया।

अशोक ने कई बौद्ध मठों, स्तूपों और शिलालेखों की स्थापना की। बौद्ध धर्म को पूरे साम्राज्य में फैलाने के लिए उन्होंने अपने बेटे महेंद्र और बेटी संघमित्रा को श्रीलंका भेजा, जहाँ उन्होंने बौद्ध धर्म का प्रचार किया।


5. धम्म की नीति और शासन

सम्राट अशोक ने अपने शासनकाल में धम्म नीति को अपनाया। यह नीति बौद्ध धर्म के सिद्धांतों पर आधारित थी, जिसमें अहिंसा, सत्य, दया, और न्याय को प्रमुख स्थान दिया गया था। उन्होंने अपने साम्राज्य में पशु बलि और हिंसा पर प्रतिबंध लगा दिया और प्रजा को नैतिकता, सहिष्णुता, और करुणा का पालन करने की सलाह दी।

अशोक के धम्म में धार्मिक सहिष्णुता, सामाजिक समानता, और व्यक्तिगत नैतिकता पर जोर दिया गया। उन्होंने अपने शिलालेखों और स्तंभों पर धम्म के सिद्धांतों को खुदवाया, ताकि लोग उन्हें पढ़कर सही मार्ग पर चल सकें। अशोक के शिलालेख और स्तंभ आज भी भारतीय इतिहास और पुरातत्त्व के महत्वपूर्ण स्रोत हैं।


6. अशोक के स्तंभ और शिलालेख

सम्राट अशोक ने अपने शासनकाल में कई स्तंभ और शिलालेख स्थापित किए, जिनमें उनके धम्म नीति और शासन के सिद्धांत अंकित हैं। ये स्तंभ मौर्य वास्तुकला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं और उनमें से सबसे प्रसिद्ध है अशोक का सिंह स्तंभ, जिसे आज भारतीय राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में भी अपनाया गया है। इन स्तंभों और शिलालेखों के माध्यम से अशोक ने अपने राज्य के लोगों को नैतिक और धार्मिक जीवन का पालन करने के लिए प्रेरित किया।


7. मृत्यु और विरासत

सम्राट अशोक का निधन 232 ईसा पूर्व में हुआ। उनकी मृत्यु के बाद मौर्य साम्राज्य धीरे-धीरे कमजोर हो गया, लेकिन अशोक की विरासत आज भी जीवित है। उन्हें इतिहास में “अशोक महान” के नाम से जाना जाता है और उनके द्वारा स्थापित आदर्श आज भी प्रेरणादायक हैं।

अशोक ने अपने जीवन में जो महान कार्य किए, उनका प्रभाव केवल भारत तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उनका संदेश दुनिया भर में फैला। उनकी नीति और शासन का तरीका आज भी राजनेताओं और समाज सुधारकों के लिए एक आदर्श है। अशोक के धम्म की नीति ने उन्हें केवल एक महान शासक ही नहीं, बल्कि एक धर्मपरायण और दयालु व्यक्ति के रूप में भी स्थापित किया।


निष्कर्ष: सम्राट अशोक का जीवन हमें यह सिखाता है कि शक्ति और सामर्थ्य के साथ दया और अहिंसा का होना कितना महत्वपूर्ण है। उन्होंने अपनी कठोरता और हिंसा से शुरूआत की, लेकिन अंततः एक महान धर्मपरायण शासक बने। उनके द्वारा अपनाई गई धम्म की नीति, बौद्ध धर्म का प्रचार, और उनके स्तंभ आज भी उनके महान व्यक्तित्व और आदर्शों की गवाही देते हैं।

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Sanjay Chauhan

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    A WordPress Commenter

    September 9, 2024

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