I am Vegetarian | Osho Hindi Speech
मैं भी शाकाहार के पक्ष में हूं, तुम्हारी वजह से! नहीं तो तुम कभी आकाश में न उड़ सकोगे। तुम्हारे उड़ने की क्षमता टूट जाएगी। शाकाहार तुम्हें हलका करेगा। सम्यक आहार तुम्हें बिलकुल हलका कर देगा, शरीर का बोझ ही न लगेगा। जैसे अभी पंख मिल जाएं तो तुम अभी उड़ जाओ। जमीन तुम्हें खींचेंगी नहीं, आकाश तुम्हें उठाएगा।
मुद्रा निरति! इसलिए कबीर कहते हैं, मुद्रा तो एक है और वह है निरति। अन-अतिशय, अन-अति, निरति, मध्य में खड़े हो जाना।
न तो ज्यादा भोजन करना, क्योंकि वह भी झुकायेगा एक तरफ; न कम भोजन करना, क्योंकि भूख सताएगी दूसरी तरफ। भोजन भी करता है। भूख मारती है; ठीक मध्य में तृप्ति है। उस तृप्ति पर तुम रुक जाना।
और अपनी तृप्तियों को जो पहचानने लगता है, वही आदमी होश में है; नहीं तो तुम भोजन कर रहे हो, तुम्हें समझ में भी नहीं आता कि कहां रुकें। तुमने होश ही खो दिया; यही पता नहीं चलता, कहां रुकें। जानवर रुक जाते हैं; तुम नहीं रुक पाते। जानवर का पेट भर गया, फिर तुम कितना ही भोजन रख दो, तुम लाख बैंड-बाजे बजाओ, इश्तहार चिपकाओ, कितना ही प्रलोभित करो कि वह भोजन बड़ा पुष्टिदायी है, फिल्म अभिनेत्रियों को लिवा लाओ और उनसे प्रचार करवाओ भैंस न सुनेंगी। बात खतम हो गई। भैंस भी ज्यादा तुमसे होशपूर्ण मालूम पड़ती है।
तुमने देखा, भैंस को अगर छोड़ दो तो वह सभी घास न खाएगी। उसका अपना घास है, वही खाएगी, बाकी घास छोड़ती जाएगी। जो उसका भोजन नहीं है, वह नहीं करेगी। सिर्फ मनुष्य ऐसा है जो सभी चीजें खाता है। कोई पशु सभी चीजें नहीं खाता, क्योंकि पशुओं के सब शरीरों के अपने आयोजन है, कि कौन सी चीज ठीक बैठती है। सिर्फ आदमी सब खाता है, सब।
ऐसी कोई चीज मैंने नहीं देखी, मैं इसकी खोजबीन करता हूं कि क्या कोई ऐसी चीज है दुनिया में जिसको आदमी नहीं खाता? नहीं; सब चीजें चींटी खाने वाले लोग हैं, चींटा खानेवाले लोग हैं, सांप-बिच्छू खानेवाले लोग हैं, कुत्ता खानेवाले लोग हैं। मैं अभी तक पा ही नहीं सका ऐसी कोई चीज, जिसको कही न कही कोई न कोई मनुष्य जाति का अंग न खाता हो; हालांकि दूसरे उस पर हंसते हैं।
चीनी सांप खाते हैं। और चीन में स्वादिष्ट से स्वादिष्ट भोजनों में सांप एक है। अफ्रीका में दीमक, चींटी, चींटे लोग इकट्ठे करके रखते हैं बोर भर-भर कर फिर उसको तलते हैं और खाते हैं। बिच्छू खानेवाले लोग हैं; छछूंदर को भी नहीं छोड़ते। कोई ऐसा प्राणी नहीं है जिसको आदमी न खाता हो। कोई ऐसा कल नहीं है जिसको आदमी न खाता हो। कोई ऐसा जहर नहीं है जिसका सेवन आदमी न करता हो। सांपों को पाल कर रखते रहे हैं लोग। उसको जीभ कटाते हैं, घड़ी दो घड़ी को मस्ती आ जाती है।
आदमी खतरनाक जानवर है। उससे ज्यादा खतरनाक कोई भी नहीं है। और संयमी है; उसने सारा संतुलन खो दिया है। उसे कुछ पता ही नहीं कि क्या भोजन है, क्या खाद्य है, क्या अखाद्य है। छोटे-छोटे जानवर भी अपनी चीज खाते है; आदमी सब खाता है। ऐसा लगता है कि हमें कुछ प्राकृतिक जांच-परख नहीं है लेकिन वैज्ञानिक इसकी खोज करते रहे हैं कि ऐसा क्यों हुआ; क्योंकि किसी जानवर में ऐसा नहीं हुआ, आदमी में क्यों हुआ? और उन्होंने बड़ी गहरी बात खोजी है, और वह यह है कि हम छोटे बच्चों के साथ जबरदस्ती करते हैं। उनको कुछ भी खाने के लिए मजबूर करते हैं, इसलिए यह उपद्रव पैदा हुआ है।
अमरीका में एक युनिवर्सिटी में–हार्वर्ड में, उन्होंने प्रयोग किया छोटे बच्चों पर कि सब भोजन रख दिया और छोटे बच्चों को छोड़ दिया–बिलकुल छोटे बच्चे! कि वे खाएं जो उनको खाना है। यह प्रयोग कोई छह महीने तक चलता था। वे बड़े चकित हुए। बच्चे वही खाते हैं जो खाने योग्य है। तुम हैरान होओगे, क्योंकि कोई स्त्री राजी न होगी कि यह बात सच है, क्योंकि बच्चे आइस्क्रीम मांगते हैं जो खाने-योग्य नहीं है; मिठाई मांगते हैं जो खाने योग्य नहीं है। लेकिन यह बच्चे तुम्हारे इनकार करने की वजह से मांगते हैं। यह बच्चे नहीं मांगते।
हार्वर्ड में जो प्रयोग हुआ वह बड़ा क्रांतिकारी है। छह महीने का अनुभव यह हुआ कि बच्चे वही खाते हैं जो जरूरी है, जो शरीर के लिए उपयोगी है। और यह भी बड़ी अनूठी बात पता चली है कि अगर बच्चा बीमार है तो वह खाता है। मां-बाप जबरदस्ती करते हैं कि खाओ।
कोई जानवर बीमारी में नहीं खाता, क्योंकि बीमारी में उपवास उपयोगी है। शरीर वैसा ही रुग्ण है, उस पर और भोजन का बोझ डालना और पाचन प्रक्रिया पर थोपना अनुचित है, अन्यायपूर्ण है। वह बीमार आदमी के सिर पर और पत्थर रख कर, उसको ढोने के लिए कहना है।
बीमार आदमी स्वभावतः भोजन लेगा। अगर बच्चों की सुनी जाए तो बच्चे भोजन न करेंगे। बच्चे को सर्दी जुकाम है, वह खाना नहीं चाहता; मां बाप कहते हैं कि खाना पड़ेगा नहीं तो कमजोर हो जाओगे। एक दो दिन नहीं खाने से कोई दुनिया में कमजोर नहीं हुआ। आदमी तीन महीने बिना खाये जी सकता है, मरता नहीं। तीन महीने बाद मौत की संभावना है। तीन महीने लायक सुरक्षित भोजन शरीर में रहता है। कोई जल्दी नहीं है। दो-चार दिन बच्चा भोजन न करे, कोई हर्जा नहीं है। उसको स्वभाव से चलने दो।
तो एक तो उन्होंने यह अनुभव किया कि बच्चे बीमारी में भोजन नहीं करेंगे। दूसरी और भी गहरी बात उन्होंने खोजी, जिसका किसी को कभी सपने में भी अनुमान न था, और वह यह थी कि बच्चे का अगर सर्दी-जुकाम है तो वह वही भोजन करेगा जिससे सर्दी-जुकाम मिटता है। या बच्चे को अगर मलेरिया है तो मलेरिया में वही भोजन करेगा जिससे मलेरिया का विरोध है।
अब यह बच्चा कैसे जानता है? क्योंकि न तो बच्चे को पता है मलेरिया का, न पता है उसे भोजन-शास्त्र का; सिर्फ उसकी शुद्ध प्रकृति, जो ठीक है, सम्यक है, उसकी तरफ ले जाती है।